zindagi shayari gulzar
वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी !!
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते !!
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी !!
उसने कागज की कई कश्तिया पानी उतारी और !!
ये कह के बहा दी कि समन्दर में मिलेंगे !!
gulzar zindagi shayari
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं रात भी !!
आयी और चाँद भी था मगर नींद नहीं !!
कोई पुछ रहा हैं मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत !!
मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुराना।
हम तो अब याद भी नहीं करते !!
आप को हिचकी लग गई कैसे !!
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता !!
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता !!
life gulzar shayari
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन !!
ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन !!
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई !!
जैसे एहसान उतारता है कोई !!
तुम्हे जो याद करता हुँ मै दुनिया भूल जाता हूँ !!
तेरी चाहत में अक्सर सभँलना भूल जाता हूँ !!
तन्हाई अच्छी लगती हैसवाल तो बहुत करती !!
पर जवाब के लिएज़िद नहीं करती !!