safar ka maza lo shayari
पांव जमीन पर थे आसमान नजर में रहा निकला था !!
मंजिल के लिए लेकिन उम्र भर सफ़र में रहा !!
आज फिर तेरी यादों के सफर में खो गया !!
ना मंज़िल मिली ना सफर पूरा हुआ !!
मेरी हर मंजिल एक नए !!
सफ़र का आग़ाज़ होती है !!
मशहूर हो जाते हैं वो जिनकी हस्ती बदनाम होती है !!
कट जाती है जिंदगी सफ़र में अक्सर !!
जिनकी मंजिलें गुमनाम होती हैं !!
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं !!
भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो निदा फ़ाज़ली !!
ये रास्ता मुझे समझ नहीं आता मुसाफ़िर हूँ !!
मैं और मंजिल का कुछ पता नहीं !!
हर मुसाफिर यहाँ मंज़िल का इंतज़ार नहीं कर रहा !!
खुश होने के लिए कुछ सफर का !!
मज़ा भी जी भर कर ले रहे हैं !!
सफर में पास दिख रही वो मंजिल बस धोखा है !!
पास जाना नहीं उसके इन सब ने कसम देकर मुझे रोका है !!
जब हमसफ़र अपना बेखबर हो जाते है तब !!
वो ज़िन्दगी में हमारे गमों का सफर लाता है !!
ये बस माँ की दुआओं का असर है !!
की आज इस बेजान जिन्दगी में भी थोड़ा सफर है !!
बस दो घड़ी भी मुमकिन हो तेरा हमसफर होना !!
फिर हमें गवारा है अपना दरबदर होना !!
उम्र बिना रुके चली जा रही है !!
लगता है सफ़र लम्बा है !!
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