safar ki shayari in
पांव जमीन पर थे आसमान नजर में रहा निकला था
मंजिल के लिए लेकिन उम्र भर सफ़र में रहा..!
ऐ मुसाफिर यू झूठी आस ना कर
तू इतनी शिद्दत से फरियाद ना कर..!
कोई कहता है मैं कातिल हूं कोई कहता मैं काफिर हूं
वक्त की नजरों मे से मुसाफिर हूं बस जिंदगी मैं खुद के काबिल हूं,.!
जिंदगी एक ऐसा सफर है जिसमें रुकावटें भी है
और संघर्ष भी खुशियां भी हैं और गम भी..!
हर मंजिल की एक पहचान होती है
और हर सफ़र की एक कहानी !
मशहूर हो जाते हैं वो जिनकी हस्ती बदनाम होती है
कट जाती है जिंदगी सफ़र में अक्सर
जिनकी मंजिलें गुमनाम होती हैं!
ज़िन्दगी के सफर में सफर करते
रहना ज़िन्दगी को संवार देता है।
मेरी हर मंजिल एक नए सफ़र का आग़ाज़ होती है!
सैर कर दुनीया की गालिब जिन्दगानी फिर कहा
जिन्दगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहा!
ये जहान जहाँ तक भी फैला हुआ है मैं वहां तक
जाकर अपने हाथों को फैलाना चाहता हूँ।
ना मंजिलों के लिएए ना ही रास्तों के लिए
मेरा ये सफर है एखुद से खुद की पहचान के लिए!
मुझे ख़बर थी मेरा इन्तजार घर में रहा
ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा!
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