बारिश पर शायरी
विचार हो जैसा वैसा मंजर होता है,
मौसम तो इंसान के अंदर होता है,
क्यों आग सी लगा के गुमसुम है चाँदनी,
सोने भी नहीं देता मौसम का ये इशारा,
कहीं फिसल ना जाओ ज़रा संभल के रहना,
मौसम बारिश का भी है और मोहब्बत का भी,
काश तुझे सर्दी के मौसम मे लगे मोहब्बत की ठंड,
और तु तड़प के मांगे मुझे कंबल की तरह,
बलखाने दे अपनी जुल्फों को हवाओं में,
जूड़े बांधकर तू मौसम को परेशां न कर,
मौसम को मौसम की बहारों ने लूटा,
हमे कश्ती ने नहीं किनारों ने लूटा,
अपनी सी लगती है हर नमी अब तो,
आँखों ने खुश्क मौसम कभी देखे ही नही,
टपक पड़ते हैँ आँसू जब किसी की याद,
आती है,ये वो बरसात है जिसका कोई,
मौसम नहीँ होता,
शहर देखकर ही अब हवा चला करती है,
अब इंसान की तरह होशियार मौसम होते ह,
मौसम की तरह बदलते हैं उस के वादे,
उस पर यह ज़िद की तुम मुझ पे एतबार करो,
गर्मी के मौसम का भी एक पल आता है,
जिसमे आधे कपड़े और ठंडे पानी का नल भाता है,
कुछ तो तेरे मौसम ही मुझे रास कम आये,
और कुछ तेरी मिटटी में बगावत भी बहुत थी,