naraz zindagi shayari
तुम राह में चुप-चाप खड़े हो तो गए हो
किस-किस को बताओगे घर क्यों नहीं जाते
पूछा न ज़िन्दगी में किसी ने भी दिल का हाल
अब शहर भर में ज़िक्र मेरी खुदकुशी का है !!
आप की खातिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ
क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के
जो मुँह तक उड़ रही थी अब लिपटी है पाँव से
बारिश क्या हुई मिट्टी की फितरत बदल गई
ye zindagi shayari
अभी महफ़िल में चेहरे नादान नजर आते हैं
लौ चिरागों की जरा और घटा दी जाये
हमने रोते हुए चेहरे को हँसाया है सदा
इससे बेहतर इबादत तो नहीं होगी हमसे
कौन सी चीज़ महंगाई की बुलंदी पे नहीं
खून-खराबा मगर इस दौर ने सस्ता रखा
मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए
best ye zindagi shayari
बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
वो जानता था कि है एहतमाम किसके लिए
वाकिफ था मेरी खाना-खराबी से वो शख्स
जो मुझसे मेरे घर का पता पूछ रहा था